रेल जोडों का अनुरक्षण -
(1) फिशप्लेट हेड जोड़ो के अनुरक्षण के लिए विशेष सावधानी की आवश्यकता होती है. जिससे कि रेलों की अच्छी लाइफ तथा साथ - 2 अच्छी रनिंग प्राप्त की जा सके.
(2) जोड़ो का दक्ष अनुरक्षण निम्न बातो पर निर्भर करता है -
(क) फ़ास्टनिंग की दक्षता पर
(ख) स्लीपरो की स्पेसिंग तथा पैकिंग की दक्षता पर.
(ग) सही फैलाव जगह तथा उसके अनुरक्षण पर.
(घ) जोड़ो के उचित स्नेहन पर.
(च) गेज तथा क्रासलेवल का सही अनुरक्षण तथा उचित पैकिंग.
(छ) उचित जलनिकास
रेल जोड़ो में खराबी -
रेल जोड़ो में पायी जाने वाली कुछ प्रमुख खराबियो और उन कमियों को दूर करने या कम करने के लिए सुझाए गये उपाय नीचे दिये गए है -
(क) लूज स्लीपर - चपटे तल वाले स्लीपरो के मामले में शावेल पैकिंग द्वारा जोड़ो के अनुरक्षण से जोड़ो की हालत में सुधार होता है. बीटर पैकिंग द्वारा पारम्परिक अनुरक्षण के मामले में यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि स्लीपर झुक न जाए.
(ख) ढीली फिश प्लेट - मानक स्पैनर का उपयोग करके फिश बोल्ट कसे हुए रखे जाने चाहिए परन्तु उन्हें इतना अधिक न कसा जाए कि रेलों का फैलाव या संकुचन ही न हो सके.
(ग) फिशिंग सतहों पर प्लेटो और रेलों का घिस जाना - जब रेलों और फिश प्लेटो के फिशिंग तल घिस जाते है तो जोड नीचे की ओर झुक जाता है. सामान्यत: घिसाव फिश प्लेटो के उपरी भाग के मध्य में सबसे अधिक और उसके सिरों पर सबसे कम होता है.
फिशिंग तल के घिसाव की क्षतिपूर्ति के लिए दो प्रकार के साधन उपयोग उपयोग में लाये जाते है.
(1) पुन: दाब दी गई फिश प्लेट
(2) शूंडाकार पर्णिका (टेपर्ड शिम):
(1) पुन: दाब दी गई फिश प्लेटे - द्र्मित फिश प्लेटे वे होती है जो गर्म फोर्ज की जाती है ताकि वे सबसे अधिक घिसाव के अनुरूप फिशप्लेट के मध्य भाग में उभार सके.
(2) शुंडाकार पर्णिका - शूंडा पर्णिका - शूंडाकर पर्णिका इस्पात के टुकड़े होते है जिन्हें उपरी फिशिंग सतहों के बीच घिसाव के सामान्य पैटर्न के अनुरूप बनाया जाता है. ये विभिन्न मोटाईयो में बनाये जाते है. प्रत्येक टुकड़े का आकार फिशिंग सतहों के बीच मिमी में घिसाई के 10 के गुणज में बनाया जाता है. पर्णिका की मोटाई 1.5 मिमी से लेकर 3.8 मिमी तक 0.5 मिमी के क्रम में भिन्न - भिन्न होती है. पर्णिकाओ की लम्बाई रेलों के विभिन्न खंडो के वास्तविक घिसाव पैटर्न के आधार पर निर्धारित की जानी चाहिए. पर्णिकाओ की मोटाई घिसाव के अनुरूप एक दूसरे से कम होती जाती है.
(घ) रेल के सिरों का बैटर हो जाना - जोड़ स्लीपरो की मजबूती से पैकिंग करके और फैलाव के लिए उचित स्थान को स्पॉट वेल्डिंग द्वारा मरम्मत की जा सकती है. सिरों की कांट - छांट द्वारा भी इसमें सुधार किया जा सकता है.
(ड) हाग्ड रेल जोड़ विउत्त्लन - डी- हागिंग मशीनों व्दारा वि - उत्त्लन किया जा सकता है रेल के सिरों का वि - उत्त्लन मापी हुई शावेल पैकिंग द्वारा किया जा सकता है. साधारणत: इस पध्दति में जोड़ स्लीपरो के जोड़ के झुकाव और स्लीपरो के नीचे खाली स्थान को ध्यान में रखते हुए स्कन्ध स्लीपरो की पैकिंग किये बिना समान्य ऊंचाई से ऊपर एक विनिर्दिष्ट ऊँचाई तक पैक किया जाता है. लगभग दो दिन तक यातायात को गुजरने दिए जाने के बाद स्कन्ध स्लीपरो को उठाये बिना पैक कर दिया जाता है जोड़ो के ऊपर से यातायात के गुजरने से वि - उत्तलन (डी - हंगिग) प्रभावित होता है. पुन: दाब दी गई फिश प्लेटो के उपयोग से उत्तलन रेल जोड़ो को सुधारने में सहायता मिलती है. उत्त्लन की मरम्मत रेल के सिरों की कांट - छौट द्वारा भी की जा सकती है ।
(च) टूटी हुई फिश प्लेटें - टूटी हुई या चटकी हुई फिश प्लेटों के स्थान पर नयी या मरम्मत की हुई फिश प्लेटें लगायी जाये ।
(छ) चटके हुए या टूटे हुए रेल सिरे - रेल सिरों पर फिश बोल्ट और बांड होल रेल को कमजोर कर देते है. यदि अनुरक्षण ठीक न हो तो रेल के सिरे टूट जाते है. यह विभजन सदैव फिशबोल्ट या बांड होल से सूक्ष्म दरार के रूप में शुरू होता है. रेल जोड़ो के स्नेहन के दौरान छोटी - मोटी दरार के लिए रेलों को बदल दिया जाए. बोल्ट छिद्रों और बांड होल की चेम्फ़रिंग की जानी चाहिए. रेलों के अल्ट्रासानिक परीक्षण से उन दरारों का पता लगाने में सहायता मिलती है जिनका आँखों से देखकर पता लगाना कठिन होता है.
(ज) जोड़ो की पंपिंग - मानसून के तुरंत बाद ऐसे जोड़ो से मिट्टी हटा दी जानी चाहिए.फार्मेशन की उपरी सतह पर सेंड ब्लैंकेटिंग की जानी चाहिए. इससे मिट्टी के गारे का ऊपर बढना रुक जायेगा. इस ब्लैंकेट की तह पर स्वच्छ और पर्याप्त गिट्टी बिछायी जाए पहले और दूसरे स्कन्ध स्लीपरो के बीच आर - पार जल निकासी नालियों की व्यवस्था की जानी चाहिए. जिओटेक्सटाइल का उपयोग भी लाभप्रद रहेगा.
जोड़ो के अनुरक्षण से संबंधित अन्य महत्वपूर्ण मुद्दे -
(क) गैपो का सर्वेक्षण आवधिक रूप से किया जाना चाहिए और गैप को एडजस्ट किया जाये.
(ख) धातु के स्लीपरो वाले मार्ग पर फिशप्लेट वाले जोड़ो पर लकडी के स्लीपरो का उपयोग वांछनीय है.
(ग) जहाँ एसडब्ल्यूआर के लिए सभी अन्य बाते संतोषजनक हो, वहाँ साधारण फिशप्लेट वाले रेलपथ को तीन रेल पैनलो में परिवर्तित किया जा सकता है.
रेलों में बोल्ट छिद्रों की चेम्परिंग करना -
(क) सामान्य -
(1) बोल्ट की चेम्परिंग के कारण छिद्रों का किनारा कठोर (वर्क हार्डनिंग) हो जाता है और इस तरह से तारे की आकृति में होने वाले दरार के निर्माण में देरी होती है.प्रत्येक छिद्रों की चेम्परिंग में 5 मिनट का समय लगता है. ड्रिल द्वारा किए गए सभी छिद्रों की चेम्परिंग की जाएगी.
(2) विभंजन /टूट की प्रवृति वाले क्षेत्र में यदि छिद्र बढ़ा हुआ नही है तो ही बोल्ट छिद्रों की चेम्फ़रिंग करनी चाहिए. बढ़े हुए छिद्रों की स्थिति में, चेम्फ़रिंग बिट बोल्ट छिद्र के सम्पूर्ण सतह के सम्पर्क में नही रहेगा और इस तरह से असमान कठोरता होगी परिणामस्वरूप कमजोर क्षेत्रो में प्रतिबल केन्द्रित होगा. इस तरह के रेल के हिस्से को हटा देना चाहिए और छिद्र करके चेम्फ़रिंग करनी चाहिए.
(ख) बोल्ट छिद्रों की चेम्फ़रिंग करने वाले उपकरण - बोल्ट छिद्रों की वर्क हाड़निंग अनुमोदित चेम्फ़रिंग किट से करनी चाहिए. चेम्फ़रिंग किट निम्न लिखित उपकरणों का बना होता है -
(1) उच्च तन्य बोल्ट एम - 20 - 1 नग
(2) उच्च तन्य नट एम - 20 बोल्ट के लिए - 1 नग
(3) 2 एचएसएस शेम्फ़रिंग बिट का सेट - 1 सेट
(4) 19 वर्ग मिमी ड्राइव साकेट आकार 32 मिमी - 8 नग
(5) 2 पैकिंग के टुकड़े का सेट (स्लीव) - 1 सेट
(6) टी - 400 टार्क - रिंच 1.25 मी. लम्बाई की रैचेट मैकेनिज्म के साथ - 1 नग
(ग) (1) यदि परिस्थितियां मांग करे तो वैल्डित रेल पैनल में किए जाने वाले छिद्रों की चेम्फ़रिंग फ्लैश बट - वेल्ड संयंत्र में भेजने से पहले करना चाहिये.
(2) यदि रेलपथ में रेल का अंतिम किनारा क्राप्ड हो तो नए बोल्ट छिद्रों की चेम्फ़रिंग कार्यस्थल पर करनी चाहिए.
(3) इस्पात संयंत्र से सीधे प्राप्त की गई नई रेलों में छिद्रों को चेम्फ़रिंग रेलपथ में लगाने से पहले कर लेना चाहिए.
(घ) बोल्ट छिद्रों की चेम्फ़रिंग करने की कार्यविधि -
(1) उच्च तन्य बोल्ट के नट को हटाकर शैंक में पैकिंग पीस लगा देना चाहिए उसके बाद एचएसएस चेम्फ़रिंग बीट के एक भाग को लगाना चाहिए.
(2) रेल छिद्र में उच्च तन्य स्टील बोल्ट को दो टुकडो में घुसाते है.
(3)रेल छिद्र के दूसरी तरफ एचएसएस चेम्फ़रिंग बिट का दूसरा हिस्सा बोल्ट के शैंक में घुसाते है. उसके बाद पैकिंग पीस का दूसरा हिस्सा लगाते है.
(4) उसके बाद उच्च तन्य स्टील बोल्ट में नट लगा दिया जाता है.
(5) टार्क रिंच को 52 किग्रा. - मी. आधूर्ण बल पर सेट करके जो कि 12.5 टन के अक्षीय बल के समतुल्य है, नट पर लगाया जाता है, टार्क रींच स्वत: ही खुल जाएगा जो कि पूर्ण कसाव का सूचक है.
(6) टार्क - रींच को उल्टी दिशा में घुमाकर नट को खोला जाता है और एचटीएस बोल्ट को निकाल लिया जाता है. यह विधि अन्य रेल छिद्रों को चेम्पर करने के लिए दोहराई जाती है.
(ड) प्रत्येक छिद्र की चेम्परिंग मेट / चाबीवाले के पर्यवेक्षक में करनी चाहिए.
रेल जोड़ो का स्नेहन -
(1) रेल जोड़ो के स्नेहन का प्रयोजन न केवल रेलों के ताप प्रसार को सहज करना है बल्कि रेलों की जोड़ सतह और जोड़ पट्टी की निहित घिसाई रोकना भी है. जोड़ सतह पर कम घिसाई निचले जोड़ो से बचने का एक निवारक उपाय है.
(2) प्रयोग में लाये जाने वाले स्नेहक की किस्म मुख्य इंजी. व्दारा निर्दिष्ट करनी चाहिए. प्ल्म्बैगो (ग्रेफाइट) और मिट्टी के तेल की सख्त लेई, जो प्ल्म्बैगो 3 किग्रा. और मिट्टी का तेल 2 किग्रा. के अनुपात से बनती है, प्रयोग की जा सकती है. जोड़ बोल्टो और नटो के लिए काले तेल या रिलेक्स्ड तेल प्रयोग किया जा सकता है. उपर्युक्त के विकल्प का प्रयोग मुख्य इंजी. के विशिष्ट अनुमोदन से किया जा सकता है.
(3) सामान्यत: रेलों के सभी जोड़ो पर वर्षा काल के बाद जाड़े के महीने में अक्टूबर से फरवरी में एक कार्यक्रम के आधार पर वर्ष में एक बार लुब्रीकेशन किया जाना चाहिए. यार्डो में मुख्य इंजी. के अनुमोदन से इसकी अवधि बढाकर दो वर्ष की जा सकती है.
(4) रेल जोड़ो के लुब्रीकेशन का काम प्रारंभ करने सर पहले 150 मिमी. से अधिक सरकन को समायोजित करना चाहिए.
(5) रेल जोड़ो के लुब्रीकेशन सामान्यत: अर्हता प्राप्त रेलपथ सुपरवाइजर के पर्यवेक्षण में गैंगो द्वारा किया जाना चाहिए यह कार्य रेलपथ निरीक्षण व्दारा प्रतिदिन जारी किये गये काशन आर्डर तथा इंजीनियरिंग सिग्नल दिखा कर दिया जाना चाहिए. इस मामले में रेल जोड़ो के लुब्रीकेशन के लिए निम्नलिखित कार्यविधि अपनायी जाएगी.
(i) नटो को खोल दिया जाये तथा जोड़ बोल्टो और जोड़ पट्टियाँ हटा दी जाए.
(ii) उसके बाद तार ब्रश से जोड़ पट्टी और रेल की जोड़ सतह को साफ किया जाए.
(iii) रेल सिरों का दरारों के लिए निरीक्षण किया जाए तथा रेलों और जोड़ पट्टियों की जोड़ सतहों के घिसाव के लिए जाँच की जाए। रेल सिरों और जोड पटूटीयों में दरारों का पता लगाने के लिए एक आवर्धन लेन्स तथा एक दर्पण का प्रयोग करना चाहिए।
(iv) इसके बाद रेलों और जोड पट्टीयों कि जोड सतहो का लुब्रीकेशन किया जाए।
(v) इसके बाद बोल्टों को प्रतिवर्ती स्थिती में फिर से लगाया जाए । तथा मानक जोड बोल्ट स्पेनर से कसा जाए, अंदर के दो बोल्टों को पहले कसा जाए ।
(vi) कसते समय बोल्टो पर जोड डालने से बचना चाहिए ।
(vii) दरार वाली जोड पह्टियाँ और बोल्टों को बदलने के लिए अतिरिक्त जोड पट्टीयाँ और बोल्ट उपलब्ध होने चाहिए ।
(vii) जब रेलगाड़ी कार्यस्थल की ओर आ रही हो तो दोनों जोड़ पट्टियाँ लगा देनी चाहिये और प्रत्येक जोड़ के दोनों तरफ का कम से कम एक जोड़ बोल्ट और नट कस देना चाहिये.
(viii) दरार पड़ी जोड़ पट्टियों और बोल्टो के नवीकरण के लिए अतिरिक्त जोड़ पट्टियों और बोल्टो को अपने साथ ले जाना चाहिये.
(6) विकल्प के रूप में लुब्रीकेशन का काम चाबी वाले को एक या अधिक आदमीयों केसहायता से उन सेक्शनों पर करना चाहिए जिन्हे मंडल इंजिनियर द्वारा निर्दिष्ट किया जाए । ऐसे स्थिती में चाबी बाला कार्य स्थल पर लाल झंडी दिखायेगा और चौकशी वाले के रूप में भी काम करेगा । इस कार्यविधि के अंतर्गत सामान्यतः एक बार में एक से अधिक जोड नही खोला जाना चाहिए ।
इस मामले में रेले जोडो का लुब्रीकेशन तथा जोड बोल्टों को उलटने का काम निम्न प्रकार से किया जाना चाहिए -
(i) नटों को खोलकर और नटो की तरफ की जोड पट्टी हटा कर अन्य जोड पट्टी और बोल्टों को उसी स्थिती में छोड दिया जाए ।
(ii) जोड पट्टी तथा रेल की जोड सतह को एक तार ब्रश से साफ किया जाए । रेल सिरों को दरारों तथा रेलों और जोड पट्टियों कि जोड सतहों का घिसाव के लिए निरीक्षण किया जाए । दरारों का पता लगाने के लिए एक दर्पण और आवर्धन लेन्स का प्रयोग किया जाना चाहिए । आवश्यक कार्यवाही के लिए ऐसी स्थितीयों की सूचना रेलपथ मेट / सुपरवाईजर को दी जानी चाहिए । जोड पट्टियों का लुब्रीकेशन करके फिर से उसी स्थिती में लगा दिया जाए ।
(iii) एक - एक जोड बोल्ट को निकालकर उनमें तेल लगाकर फिर से लगा दिया जाये । रेल की अन्य जोड पट्टी तथा जोड सतह पर इसी प्रकार काम किया जाए ।
(iv) नटों को बदल दिया जाए तथा बोल्टों पर बिना अधिक दबाव डाले मानक जोड बोल्ट स्पैनर से उसे यथा संभव कस दिया जाए ।
(v) आमने सामने के दो जोडो या क्रमीक जोडो को एक साथ नही खोलना चाहिए यह विशेष रूप से नोट करना चाहिए कि इस कार्यवाही के दौरान किसी भी समय दो रैलों को जोडने के लिए एक जोड पट्टी और बिना नट वाले तीन जोड बोल्टो से कम नही रहने चाहिये। आदमियो को काम करते समय रेलगाडी की ओर मुख करके बैठना चाहिये।
(vi) जब रेलगाडी कार्यस्थल की ओर आ रही हो तो दोनो जोड पट्टिया लगा देनी चाहिये और प्रत्येक जोड के दोनो तरफ का कम से कम एक जोड बोल्ट और नट कस देना चाहिये।
(vii) दरार पडी जोड पट्टियों और बोल्टो के नवीकरण के लिए अतिरिक्त जोड पट्टियो और बोल्टो को अपने साथ ले जाना चाहिये।
(7) मुख्य इंजी. जैसा आवश्यक हो, सहायक अनुदेश जारी कर सकता है.
(8) जिस लम्बाई में रेलों का लुब्रीकेशन किया जाये, तारीख सहित उस सेक्शन के गेंग चार्ट तथा रेलपथ निरीक्षक सेक्शन रजिस्टर में दर्ज कर लेना चाहिये अप्रैल माह में रेल निरीक्षक को चाहिये की रेलों के जोड़ो को लुब्रीकेशन करने का प्रमाण पत्र तथा किसी स्थान पर न लगा पाने के कारण सहायक इंजी. के पास भेजे. सहायक इंजी. को अभियुक्ति सहित इन प्रमाणपत्रों की प्रतिया छान बीन और रिकार्ड के लिये मंडल इंजीनियर को अग्रेषित की जानी चाहिये.
(9) रेलपथ को पुन: बिछाने, रेलों के नवीनीकरण और टर्न आउट के नवीनीकरण इत्यादि संबंधी सभी कार्यो के लिये जोड़ो का लुब्रीकेशन करना चाहिये. यातायात के बोझ से जोड़ पट्टियों पर बल पड़ने के बाद लाइन पर जाकर बोल्टो को फिर से कसने का महत्व कर्मचारियों के मन में बैठाया जाना चाहिये.
(10) विद्युत रोधी जोड़ पट्टियों को ग्रीस नही लगानी चाहिये.
No comments:
Post a Comment
Note: Only a member of this blog may post a comment.