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Friday, December 4, 2020

पॉइन्ट्स तथा क्रासिंग परिचय एवं परिभाषाए

  •  रेल्वे वाहन को एक ट्रैक से दूसरे ट्रक  ले जाने के लिये जिस अवयव का उपयोग होता है उसे पाइन्टस तथा क्रासिग कहते है। भारतीय रेल में लगभग 1 लाख 10 हजार से अधिक पाइन्टस तथा  क्रासिग है 
  •  टंग रेल तथा स्टाक रेल के जोडे उनके आवश्यक फिटिंग के साथ पॉइन्ट कहलाते है। 
  • दो रनिंग लाइन के विच्छेदन बिंदु पर चक्के के फ्लैज  के पारगमन हेतु ट्रैक क्रॉसिंग लगाते है। इसमें  विंग रेल तथा वी रेल के बीच निधारित अंतराल होता है जिस पर पहिये का ट्रैड उछलता है। 
  • यातायात को एक मार्ग से दूसरे मार्ग  पर ले जाने के लिए पाइंट्स तथा क्रासिंग की व्यवस्था को टर्नआऊट भी कहा जाताहै। 
दो समानान्तर, आपस में दूर  जाने वाले या पास आने वाले मार्ग को जोडने के लिए टर्न  आऊट का प्रयोग किया जाता है। भारतीय रेल में  63400 रूट कम से अधिक लम्बे ट्रैक  में  1,10,000 पाइन्टस तथा क्रासिंग लीड रेल के साथ आपस में  मार्गो  को जोडते है। 

टर्न  आऊट के भाग  - 

1. स्विच भाग (स्टाक रेल जोड से स्विच  के हील  तक )
2. लीड भाग (स्विच के हल से क्रासिंग के सैध्दांतीक नोज) 
3. क्रासंग भा(क्रासंग के सैध्दातक नोज से क्रासिंग  के हील तक) 

टर्न आउट की  सम्पूर्ण  लम्बाई (ओवर आल लेंथ) - इसे टर्न  आऊट के सीधे रास्ते की ओर स्टाक रेल  जोड से क्रासिंग के हील तक नापा जाता है।कभी-कभी इसके बाद टर्न इन-कर्व  शुरु होते है 

1. चल स्टाक को जिस दिशा में ले जाना होता है उसके अनुसार इसे दायाँ बाजू या बाँया बाजू का टर्न आऊट कहा जाताहै। 

2. टंग रेल के टीप को स्विच  का वास्तविक टो कहते है  

3. स्टाक रेल तथा पहुँच रेल के बीच जोड को स्टाक रेल जोड कहते है। 

एसआरजे - स्टाक रेल जोड (स्टॉक रेल जॉइंट) 

टी टी एस - स्विच  का सैद्धांतिक (थ्योरटिकल टो ऑफ स्विच ) 
एटीएस - स्विच  का वास्तविक (एक्चुअल टो ओफ स्विच  ) 
जेओएच - हैड का जंक्शन  (जंक्शन ऑफ हेड) 
एच ओ एस - स्विच  का हील (हील ऑफ स्विच ) 
टी ओ सी - क्रासिंग  का  टो(टो ऑफ क्रॉसिंग) 
टीएनसी - क्रासिंगग का सैद्धांतिक (थ्योरिटीकल नोज ऑफ क्रॉसिंग) 

एएनसी - क्रासिंग का वि(एक्चुअल नोज ऑफ क्रॉसिंग ) 
एचओसी - क्राससिंग का हील (हील ऑफ़ क्रॉससिंग) 

स्टाक रेल - पूरी तरह बंद अवस्था मे जिस रनिंग रेल के विपरीत तिरछी तथा चलने वाली  टंग रेल ठहरती है उसे स्टाक रेल कहते है। 

टंग रेल - स्विच  के वास्तविक टो से हैड के जंक्शन तक मशीनीकृत तिरछी चलने वाली रेल जो स्विच  के वास्तविक टो पर सबसे पतलील तथा से हैड के जंक्शन पर रेल हैड के बराबर मोटाई की  होती है।

स्विच  - बंधको तथा फिटिंग  के साथ टंग रेल के एक जोडे को स्विच  कहते है 

दायाँ बाजू स्विच  (आरएच स्विच ) 


सम्मुख (फेसिंग )तथा विपरीत (ट्रेलिंग ) दिशा - गाडी के चलने के अनुसार जब गाडी पॉइन्ट से क्रासिंग ओर जाये तब फेसिंग दिशा और जब वाहन क्रासिंग से पाइंट्स की  ओर जाए तब विपरीत  (ट्रेलिंग ) दिशा कहते है।

स्विच  के प्रकार  - सामान्य: स्टाक रल के फुट पर टंग रेल को व्यविस्थत रख कर स्विच के हील पर कसा जाताहै।

सीधे स्विच  - स्विच  के वास्तविक टो से हील तक जब टंग रेल सीधा हो अथार्त को वसाईन न हो तब इसे सीधा स्विच कहा जाता है। इनके स्विच कोण कर्व  स्विच की अपेक्षा अधिक होते है।अत: एटी एस पर वाहन द्वारा अधक पाश्वरल का अनुभव किया जाता है। इस प्रकार के स्विच में  एलएच टर्न   आउट का  टंग रेल आरएच टर्न  आउट मे तथा विपरीत , उपयोग में  लाये जा सकते है। परंतु दिशा में अधिक परिवर्तन के  कारण ल्र्च  अनुभव होता है

कर्व स्विच : इस प्रकार के स्विच में  वक्रता स्विच के वास्तविक टो से शुरू हो  जाती  है अत: टंग रेल तथा स्टाक रेल का वसाइन निधारित होता है। जिसके   लिए टर्न  आउट के बिछाने के पूर्व  जिम के  द्वारा यह कार्य  बाहर ही पूरा कर  लिया जाता  है स्विच  प्रवेश कोण कम होने के कारण पाश्वबल कम होता है और ठोकर भी कम लगती है। वाहन का स्विच भाग में  प्रवेश  सहज होता यात्री असुविधा का स्तर घट जाता है। हील और पहिये का घिसाव कम हो जाताहै। परन्तु  स्विच की लम्बाई   अधिक होने के कारण तथा एकल - खिचाव व्यवस्था में  रेल तथा स्टाक रेल के बीच कम अंतराल होने से पहिये का पिछला भाग टंग रेल से टकराता है स्विच के थ्रोको बढाकर  इसका निदान लिया गया है

स्विच का ऐतहासिक  विकास  - क्रमश: नीचे दशार्या है-

1. स्टब स्विच

2. संशोधत स्टब स्विच

3. स्प्लिट स्विच

4. अंडरकट स्विच

5. ओवर राइडीग स्विच

6. थिक वेब  स्विच

1) स्टब स्विच :- प्रत्येक टंग हील तथा क्रासिंग के स्थान पर छोटे हीलगाकर शुरूवात के  दिनो मे इन्हे दोनो माग से आवश्यकतानुसार जोड कर भौतिक विस्थापन   द्वारा मार्ग बदलकर वाहन को एक ट्रैक से दुसरे ट्रैक ले जाते थे।

2) संशोधित स्टब स्विच :- तीसरे छोटे हील को बिल्ट अप क्रासिंग द्वार लेकर इसे संशोधित स्टब स्विच कहा गया। यह स्टब स्विच का सुधारत रूप था

3) स्प्लिट स्विच :- उपरोक्त दोनो प्रकार की व्यवस्था संरचनात्मक रूप से कमजोर तथा कठिन होने के कारण तापमान में  परिवर्तन  होने पर अधिक कठनाईयाँ हुई और  इसके निराकरण रूप मे स्प्लिट स्विच खोज निकाला गया

4) अंडरकट  स्विच :-पहली बार टंग तथा स्टाक रेल के लिए अलग-अलग रेल का प्रयोंग किया गया जिसमे  पहले स्टाक रेल तथा टंग रेल फ्लैज को तिरछा काट कर टंग रेल की  हाऊसिंग की गई जिसे अंडरकट  स्विच के नाम से जाना गया। इसमें स्टाक  रेल कटे हुए स्थान पर कमजोर हो गया

5) ओवर राइडिंग स्विच - स्टाक रेल को पूरा रखकर केवल टंग रेल के निचले भाग को काट कर तथा घिससकर स्टाक रेल के साथ हाउसिंग की गई जिसके कारण  स्विच की मजबूती बढ गई ।यह स्वर आज भी सबसे अधिक उपयोग में  है।

लाभ -

1) स्टाक रेल पूर्ण  सेक्शन के मजबूत होते है

2) केवल टंग रेल की  कटाई-छटाई होने से सस्ते होते है

 3) वाहन का भार पॉईन्ट के सेट स्थिती में टंग तथा स्टाक रेल द्वारा मिलकर लिया जाता है।

पाइन्ट तथा क्रासिंग के अवयव :-

 1) टंग रेल  2) स्टाक रेल  3) स्विच   4) पॉइन्ट  5) लीड  6) क्रासिंग

स्विच का हील :- 1) लूज हील स्विच में यह टंग रेल के अंत तथा लीड रेल के आरम्भ में गेज फेस पर एक काल्पनिक बिंदु है जो हील ब्लाक के मध्य स्थित होता है

2) स्थिर हील स्विच :- टंग रेल का अंतिम सिरा बोल्ट तथा ब्लाक की सहायता से स्टाक रेल के साथ बंधा होता है पाइंट्स को चलाने से पूरा टंग रेल हिलता है भीतरी फिश प्लेट को बेंड किया जाता है ताकि टंग रेल सहजता से चलाया जा सके फिशिंग फिट ब्लाक में 4 बोल्ट लगाते है जिसमे से पहले दो हल्के हाथ से कसे जाते है तथा पीछे के दो स्पैनर से कसे जाते है पहिये की ठोकर से जोड़ो पर बोल्ट हील लम्बे होने लगते है तथा टंग रेल में  क्रीप बढ़ता है

स्थिर (फिक्स्ड ) हील स्विच :- टंग रेल की लम्बाई हील पर समाप्त न होकर लीड भाग तक जाती है टंग रेल की लम्बाई बढ़ाकर लचीलापन प्राप्त किया जाता है निर्धारित थ्री प्राप्त करने पर न्यूनतम 6400 मिमी लम्बा टंग रेल आवश्यक है

स्विच की लम्बाई तथा टंग रेल की लम्बाई :

टंग रेल के वास्तविक टो से स्विच के हील तक की सीधी लम्बाई स्विच की लम्बाई कहलाती है

लूज हील स्विच के लिए - टंग रेल की लम्बाई = स्विच की लम्बाई
स्थिर हील स्विच के लिए - टंग र्रेल की लम्बाई  > स्विच की लम्बाई

हील डाइवर्जेस -
स्विच के हील पर टंग रेल तथा स्टाक रेल के गेज फेस के बीच की दूरी को हील डाईवर्जेस कहते है
इसे स्टाक रेल के गेज फेस के लंबवत मापा जाता है पहिये के फ्लैज से टंग रेल के नान गेज फेस को घिसने से बचाने के लिए इनका मान अन्तराल को हील क्लीयरेंस कहते है

G = जी + सी + टी + जहाँ G = ट्रैक का गेज  = 1676 मिमी

जी  = पहिये का गेज = 1600 मिमी

सी = हील क्लीयरेंस

टी  = व्हील फ्लैज की न्यूनतम मोटाई, टी अधिक = 28.5 मिमी टी न्यून = 16 मिमी

सी = 1676  - 1600 - 16 = 60 मिमी

स्विच का थ्रो :- जब पाइंट्स को चलाया जाये तब टंग रेल पूर्णत: खुली  अवस्था में पहुंचने के लिए जितनी दूरी टी करती है इसे स्विच का थ्रो कहते है इसे स्विच के तो पर स्टाक रेल के गेज फेस तथा टंग रेल के नान गेज फेस के बीच नापा जाता है
बीजी के लिए न्यूनतम 95 मिमी सिफारिश की गई 115 मिमी
एमजी के लिए न्यूनतम 89 मिमी सिफारिश की गई 100 मिमी
नये कार्यो के लिए न्यूनतम 115 मिमी अधिकतम 160 मिमी तक बढ़ाया जा सकता है

स्विच कोण तथा स्विच प्रवेश कोण :

सीधे कोण तथा स्विच प्रवेश कोण :

सीधे स्विच के लिए टंग रेल की बंद अवस्था में टंग तथा स्टाक रेल के गेज फेस के बीच अंतरित कोण को स्विच कोण कहते है

कर्व स्विच के लिए तो पर टंग रेल की पूर्णत: बंद अवस्था में खींची गई काल्पनिक स्पर्श रेखा तथा स्टाक रेल के गेज लाइन के बीच अंतरित कोण को स्विच प्रवेश कोण कहते है

क्रासिंग न. स्विच का प्रकार गेज कोण

स्विच का सैध्दांतिक टो - टंग रेल की बंद अवस्था में टंग तथा स्टाक रेल के गेज लाइनों के परस्पर काटने वाले बिंदु को स्विच का सैध्दांतिक टो मानते है

हेड का जंक्शन - स्विच का वह बिंदु जहाँ टंग रेल का पतला सिरा धीरे धीरे बढकर हेड की पूरी मोटाई प्राप्त करता है और टंग रेल की बंद अवस्था में अंतिम बिंदु जो स्टाक रेल के सम्पर्क में रहता है हेड का जंक्शन कहलता है खुली अवस्था में टंग रेल तथा स्टाक रेल का न्यूनतम अन्तराल 38 मिमी होना चाहिए स्विच का हाऊसिंग हेड के जंक्शन तक किया जाना चाहिए जिससे स्विच का अनुरक्षण km हो जाता है विभिन्न प्रकार के स्विच के लिए एटीएस से जेओएच की निर्धारित दूरी निम्ननुसार होती है

1. 4725 स्ट्रेट स्विच लकड़ी स्लीपर पर                             - 2215  मिमी
2. 6400 मिमी कर्व स्विच क्रांकीट स्लीपर 52 केजी  रेल     - 3023 मिमी
3. 6400 मिमी कर्व स्विच क्रांकीट स्लीपर 60 केजी रेल     - 3229 मिमी
4. 10125 मिमी कर्व स्विच क्रांकीट स्लीपर 52 केजी रेल   - 5540 मिमी
5. 10125 मिमी कर्व स्विच क्रांकीट स्लीपर 60 के जी रेल - 5836 मिमी

हेड के जंक्शन पर टंग रेल तथा स्टाक रेल के बीच न्यूनतम अन्तराल को ध्यान में रखकर स्विच का थ्रो निर्धारित किया जाता है टर्न आउट की ओर जाने वाले चलस्टाक सबसे पहले स्विच भाग से टकराते है परिणाम स्वरूप टंग रेल के तो  पर ठोकर तथा पार्श्व बल टंग रेल के घिसाव तथा टर्न आउट ज्यामिति में खराबी का कारण बनते है

स्विच के अवयव : -

1) स्ट्रेचर बार
2) गेज टाई प्लेट
3) हील ब्लाक
4) डिस्टेस ब्लाक
5) स्लाइड चेयर
6) गोलाकार (स्फेरिकल ) वाशर
7) स्विच स्टॉप और स्लाइड ब्लाक

स्ट्रेचर बार : - बीजी के लिए स्ट्रेचर बार 75 x 12 मिमी आकार के स्प्रिंग स्टील फ़्लैट के बने होते है इन्हें उर्ध्व स्थिति में एमएस ब्रेकेट द्वारा टंग रेल से जोड़ा जाता है टर्न बोल्ट का प्रयोग किया जाता है स्ट्रेचर बार को पुलराड से जोड़ने के लिए लग का प्रयोग करते है पहले स्ट्रेचर बार को लीडिंग स्ट्रेचर बार तथा बाद के स्ट्रेचर बार को क्रमश: प्रथम अनुगामी द्वतीय अनुगामी नाम से जानते है टर्न बोल्ट का व्यास तथा इनमे किए छिद्र का व्यास बराबर रखा जाता है ताकि इसमें चाल न हो हील के पास चक्का चलने के कारण टंग रेल के तो को उठने ए बचाने के लिए स्टाक रेल फुट के निचले तल और स्ट्रेचर बार के टॉप के बीच केवल 1.5 मिमी का गैप रखा जाता है टर्न बोल्ट तथा होल का व्यास बीजी के लिए 20 मिमी तथा एम् जी लिए 18 मिमी है एक ही लीवर द्वारा दोनों टंग रेल को साथ चलाने के लिए न्यूनतम स्ट्रेचर बार निम्नानुसार होते है -

8.5 में 1 तथा 12 में 1 - 2 नग
क्रांकीट स्लीपर पर 12 में 1   - 4 नग
क्रांकीट स्लीपर पर 8.5 में 1 - 3 नग

टंग रेल के टो तथा क्रासिंग के नाक सही गेज बनाए रखने के लिए गेज टाई प्लेट का उपयोग करते है

बीजी - 250 x 12 मिमी एम् जी  - 220 x 10 मिमी

डिस्टेंस ब्लाक - दो समानांतर या तिरछे रेलों के बीच निर्धारित दूरी बनाए रखने के लिए इसका प्रयोग करते है ये दो प्रकार के होते है -

1. फिशिंग फिट  - ये फिश प्लेट की तरह भी कार्य करते है
- लूज हील स्विच के हील पर
- क्रासिंग के नाक पर दो ब्लाक (थ्री पाइंट फिट)

2. वेव फिट ब्लाक -
- स्थिर हील के हील पर
- स्विच के हील के पीछे डिस्टेंस ब्लाक
- क्रासिंग के गर्दन पर तथा नोज ब्लाक के पीछे
- रनिंग रेल तथा चेक रेल के बीच के ब्लाक

स्लाइड चेयर - इसका उपयोग निम्न कारणों से किया जाता है -

1. टंग रेल को सहज संचलन प्रदान करने के लिए
2. टंग रेल के फ्लैज को ओवर राइडिंग स्विच में 6 मिमी ऊँचा सहारा प्रदान करने के लिए
3. स्टाक रेल को बांधने  के लिए पतले मत्थे और मोटे मत्थे का बोल्ट क्रमश : आरम्भ और बाद में प्रयोग में लाया जाता है

स्विच एंकर - टंग रेल तथा स्टाक रेल के बीच यदि अधिक सापेक्ष संचलन लम्बाई की दिशा म हो तब इसे km करने या रोकने के लिए एक वैकल्पिक फिटिंग का प्रयोग किया जाता जिसे स्विच एंकर कहते है

स्विच स्टाप - टंग रेल के तो तथा हील के बीच कोई पार्श्व बन्धन नही होता है तथा जेओएच और स्विच के हील के बीच टंग रेल तथा स्टाक रेल के मध्य निर्धारित दूरी बनाए रखने के उद्देश्य से यू आकार का बेंट प्लेट बोल्ट तथा नट की सहायता से टंग रेल के साथ बांध दिया जाता है टंग रेल अवस्था में यह स्टाक रेल के साथ सटा रहता है जो पार्श्व दिशा में टंग रेल को सहारा देता है

12 में 1 तथा 8.5 में 1 कर्व स्विच में - 2 नग

8.5 में 1 सीधे स्विच में   - 1 नग

स्लईड ब्लाक - 8.5 में 1 कर्व स्विच को छोडकर बाकी सभी कर्व स्विच में पार्श्व सामर्थ्य को बढ़ाने के लिए स्लाइड ब्लाक का प्रयोग करते है इन्हें स्टाक रेल के साथ स्लाइड चेयर के बोल्ट द्वारा कसा जाता है टंग रेल की बंद अवस्था में स्लाइड ब्लाक पार्श्व  सहारा प्रदान वाले इसे जेओएच के पीछे प्रत्येक स्लीपर पर स्विच के हील तक लगाया जाता है

स्फेरिकल वाशर : - इसे दो भागो में बनाया गया है जो आपस में एक दुसरे के साथ समायोजन द्वारा बोल्ट की रेल के साथ कोणीय स्थिति में भी नट को पूरी तरह कसने और बलों के केन्द्रीयकरण में सक्षम बनाया है यह नट तथा बोल्ट को रेल के वेब के साथ फ्लश फिट  बनाने में सहायता प्रदान करता है इसका प्रयोग स्विच तथा क्रासिंग में तिरछे सतहों को कसने के लिए किया जाता है जब बोल्ट रेल अक्ष के लंबबत न हो तथा इसका प्रयोग अतिआवश्यक है इस वाशर का प्रयोग तिरछे रेल की ओर किया जाता है भारतीय रेल पर सीधे स्विचयुक्त आईआरएस टर्न आउट पर इसे बाये बाजू में लगाया जाता है

1. नट या बोल्ट के मत्थे को रेल बेब के साथ चिपकाकर कसने के लिए यह जरूरी है
2. बोल्ट का अक्ष जब कसे जाने वाले सतह के लंबवत न हो तब भी इसका प्रयोग आवश्यक है

लीड - एचओएस तथा टीएनसी के मध्य सीधे भाग को टर्न आउट का लीड भाग कहा जाता है इसे सीधे रास्ते पर नापा जाता है

कर्व लीड = स्विच लीड + लीड की लम्बाई

क्रासिंग : रेल पहिए के फ्लैज को एक ट्रैक से दुसरे ट्रैक पर ले जाने के लिए जंक्शन पर जहाँ दो रेल एक दुसरे को काटते है, क्रसिंग्को लगाया जाता है इस वी रेल तथा विंग रेल को जोड़ कर बनाया जाता है  वी रेल तथा स्प्लईस रेल को बोल्ट द्वारा जोड़ कर बनाते है अत: एक बिल्ट अप क्रासिंग में बाये विंग रेल, वी रेल तथा दाया विंग होता है

क्रासिंग का सद्वान्तिक नाक :- क्रासिंग के वी के दोनों गेज लाइनों को आगे बढ़ाने पर जिस बिंदु पर आपसे में काटते है उस बिंदु को टीएनसी कहते है यह एक काल्पनिक बिंदु है जिसका प्रयोग सभी सैध्दांतिक गणनाओ में किया जाता है

क्रासिंग का वास्तविक नाक : - क्रसिंग्के वी पर वह वास्तविक स्थान जहाँ वी के दोनों गेज फेस के बीच फैलाव रेल सेक्शन के वेब मोटाई के बराबर हो जाता है एएनसी कहलाता है क्रासिंग भाग के निरिक्षण में यह महत्वपूर्ण है

क्रासिंग की गर्दन :  दो विंग रेलों के बीच जिस स्थान पर निकटतम दूरी होती है उसे क्रासिंग गर्दन या थ्रोट कहते है

क्रासिंग का टो :-  क्रासिंग के आरम्भ बिंदु को क्रासिंग का टो कहा जाता है सामान्यत ; विंग रेल का टो ही क्रासिंग का तो होता है

क्रासिंग का हील - क्रासिंग के वी का पिछला हिस्सा जहाँ समाप्त होता है उसे क्रासिंग का हील कहते है

क्रासिंग के टो से हील तक की तिरछे दिशा में दूरी को क्रासिंग की लम्बाई कहते है

क्रासिंग का कोण :- वी रेल के दोनों गेज लाइनों के बीच अंतरित कोण को क्रासिंग कोण कहते है

1.   8.5  में 1    6' 42' 35"
2.   12 में 1     4' 45' 49"
3.   16 में 1     3' 34' 34"
4.   20 में 1    2' 51' 45"

क्रासिंग का नंबर :- किसी भी क्रासिंग के कोटेजेंट को उस क्रासिंग का नंबर कहते है इसे एन में 1 के रूप में दर्शाया जाता है जिसमे एन का मान 8.5, 12 16 या 20 हो सकता है

क्रासिंग का नंबर  दर्शाने का तरीका -

1. समकोण विधि - इसका प्रयोग भा. रे. में किया जाता है एन = काट एफ
2. सेंटर लाइन विधि - एन = 1/2 काट एफ /2
3.  समद्विबाहु  त्रिभुज विधि - एन = 1/2 को सेफ एफ /2

न्यून कोण, अधिक कोण तथा समकोण क्रासिंग - किसी टर्न आउट में एक ट्रैक का एक रेल दुसरे ट्रैक के एक रेल को काटते हुए पार करता है जब दो गेज लाइन के बीच विच्छेदन कोण 90' से जम हो तब उसे न्यून कोण क्रासिंग, जब विच्छेदन कोण 90' से अधिक हो तब उसे अधिक कोण क्रासिंग और जब कोण ठीक 90' का हो अर्थात समकोण हो तब उसे समकोण क्रासिंग कहते है यदि दोनों ट्रैक का गेज एक ही हो तब उसे स्क्वायर क्रसिग कहते है

क्रासिंग के प्रकार -
1) बिल्ट - अप क्रासिंग
2) सीएमएस  क्रासिंग
3) स्विंग नोज क्रासिंग
4) स्प्रिंग क्रासिंग

चैक रेल तथा चेक रेल का अन्तराल - बुरी तरह घिसे हुए पहिए के फ्लैज द्वारा क्रासिंग के नाक को ठोकर से बचाने तथा दुर्घटना रोकने के लिए क्रासिंग के नाक के विरुद्ध रेलों पर दोनों बाजू एक -एक चैक रेल लगाया जाता है चेक र्रेल का आरम्भिक अन्तराल बीजी पर 44 मिमी तथा एमजी पर 41 मिमी रखा जाता है चेक रेल में घिसाव होने पर बीजी में 48 मिमी तथा एम् जी पर 44 मिमी तक चेक रेल अन्तराल को समायोजित किया जाता है ताकि अधिकतम अन्तराल की सीमा पार न हो चेक रेल के दोनों सिरे तथा विंग रेल का पिछला सिरा मोडकर बीजी में 44 से 60 मिमी तक एवं एमजी पर 41 से 57 मिमी तक फैलाया जाता है चेक रेल को 610 मिमी की लम्बाई में घिसकर इस अन्तराल को बढ़ाया जाता है

सीएमएस क्रासिंग -

कास्ट मैगनीज क्रासिंग ढलाई करके बनाए जाते है अत: अधिक टिकाऊ होते है परन्तु निचला भाग खोखला होता है इसलिए बीच - बीच में रिब द्वारा मजबूतीकरण किया जाता है और भार वहन के लिए धातु की मोटाई पर्याप्त रखी जाती है ये संतोषप्रद सेवा देते है शुरू में सीएमएस क्रासिंग में अधिक घिसाव तथा क्रैक ज्यादा तथा और धीरे - धीरे इस समस्या का निदान खोजा गया यह पाया गया कि क्रैक मंद गति से बढ़ते है इसकी आरम्भिक कीमत अधिक अपर अनुरक्षण की लागत कम है, अत: यह आर्थिक रूप से उपयुक्त है

स्प्रिंग या चालित विंग क्रासिंग - यह बिल्ट अप क्रासिंग का एक प्रकार है जिसमे कम यातायात की दिशा में विंग रेल को स्प्रिंग की सहायता से वी के साथ दबाकर रखा जाता है जिसके कारण मुख्य मार्ग में चलने  वाले वाहन के लिए वी तथा विंग रेल के बीच कोई गैप नही होता  अत: घिसाव कम होता है परन्तु दूसरी दिशा से चलने वाली गाड़ी का चक्का फ्लेंज की सहायता से इस विंग रेल को हटाते हुए अपना मार्ग बनाता है इस समय विपरीत रेल पर लगाया गया चेक रेल चक्के  को दिशा देता है टर्न आउट की दिशा में कम यातायात होने के कारण उनका प्रयोग पहले स्लिप साइडिंग तथा आपात क्रास ओवर में किया जाता था सामान्य बिल्ट- अप क्रासिंग की अपेक्षा ये अधिक टिकाऊ होते है और अधिक सेवा देते है

टर्न इन कर्व - क्रासिंग के हील से फाउलिंग मार्क तक वक्राकार ट्रैक को टर्न इन कर्व कहा जाता है

टर्न आउट कर्व पर गति -
(1) किसी भी स्थिति में गैर अंतर्पशित फेसिंग पॉइंट पर गाड़ी की गति 15 किमी . घंटा से अधिक नही होगी जब तक अनुमोदित विशेष अनुदेशों द्वारा अधिक गति अनुमत न हो टर्न आउट तथा क्रास ओवर पर गति 15 किमी / घंटा से अधिक नही होगी

(2) अंतरपशन के न्य्मो द्वारा अनुकूल गति पर अंतर्पाशन फेसिंग पॉइंट पर गाड़ी चलायी जायेगी बशर्ते उपरोक्त उपनियम 1 में दर्शाये प्रावधान पूर्ण होते है

यात्री यातायात के लिये रनिग लाइनों पर टर्न आउट -

रनिंग लाइनो पर टर्न आउट, जिन पर यात्री गाडियों को लिया भेजा जाता है, को 12 में 1 सीधे स्विच से तीव्र नही बिछाना चाहिये जबकि स्थान की कमी के कारण 12 में 1 टर्न आउट बिछाये जा सकते है कर्व के बाहर बाजू जब टर्न आउट निकलना हो तब भी तीव्र क्रासिंग लीड रेडियस को निर्धारित सीमाओं में रखते हुये टर्न आउट बिछाये जा सकते है कर्व के बाहर बाजू जब टर्न आउट निकलना हो तब भी तीव्र क्रासिंग लीड रेडियस को निधारित सीमाओं में रखते हुये टर्न आउट बिछाये जा सकते है

गेज पर लीड का न्यूनतम रेडियस

बीजी = 350 मी. एमजी  = 220 मी. एनजी (762 मिमी. ) = 165 मी.

कर्व के बाहर निकलने वाले टर्न आउट के लिये वर्तमान ट्रैक सेंटर के कारण जब उपरोक्त दर्शाये गये रेडियस के टर्न इन कर्व बिछाना संभव न हो तब बीजी में टर्न इन कर्व का न्यूनतम रेडियस 220 मी तथा एमजी में 120 मी तक अनुमत है बशर्ते -

(1) स्लीपर स्पेसिंग में लाइन के समान रखकर पीएससी या स्टील ट्राफ़ स्लीपर टर्न इन कर्व बिछाये

(2) में लाइन पर डबल या मल्टीपल लाइनों के बीच ट्रेलिंग दिशा में बिछाये गये 8.5 में 1 आपात क्रासओवर पर में लाइन के समान पूरा गिट्टी का प्रोफाइल रखते हुये यात्री रनिंग लाइनों पर 8.5 में 1 सीधे स्विच के साथ बिछाये गये टर्न आउट में गति 10 किमी / घ. तक सीमित होगी जबकि नॉन यात्री रनिंग लाइनों पर 8.5 में 1 टर्न आउट के लिये 15 किमी / घ. अनुमत होगा

अंतरपाशित टर्न आउट पर गति -

अ) सामान्य नियम 4.10/1976 के अनुसार अनुमोदित केवल विशेष अनुदेशों के अधीन ही अंतरपाशित टर्न आउट पर सीधी जानेवाली गाड़ी को 15 किमी. प्रतिघंटा से अधिक गति की अनुमति दी जा सकती है

ब) कर्व स्विच के साथ 8.5 में 1, 12 में 1 तथा अधिक चपटे टर्न आउट के मामले में टर्न आउट साइड में अनुमोदित विशेष अनुदेशों के अधीन तथा अनुमत अधिकतम गति की अनुमति दी जा सकती है बशर्ते इस प्रकार की अधिकतम गति के लिये टर्न इन कर्व उचित मानक का हो 15 किमी प्रति घंटा से अधिक गति की अनुमती देते समय निम्नलिखित प्रावधानों का ध्यान रखा जाना चाहिये -

वक्रो के अंदर से शुरू होनेवाले टर्न आउट पर अनुज्ञेय गति वक्र लीड के परिणामी त्रिज्या को ध्यान में रखते हुये निश्चित की जानी चाहिये जो कि सीधे लाइनों से  शुरू होने वाले टर्न आउट के वक्र लीड से अधिक तीखा होगा वक्रो के अंदर 8.5 में 1 टर्न आउट नही बिछाये जाने चाहिये

टर्न आउट तथा लूप पर गती को 30 किमी. प्रतिघंटा तक बढ़ाना -

गाडियों के संचालन में गति का अधिकाधिक लाभ सुनिश्चित करने के लिये एक समय में (एक साथ ) लगातार अधिकतम स्टेशनो के टर्नआउट पर सुधार कर गति बढायी जानी चाहिये किसी भगा के सभी रनिंग लूप पर सुधार कार्य एक साथ किया जाना चाहिये केवल स्टील ट्राफ़ या क्रांकीट स्लीपर पर बिछाये गये टर्न आउट पर ही 15 किमी. घ. से अधिक गति अनुमत होगी रनिंग लूप पर सभी टर्नआउट 52 केजी रेल सेक्शन के कर्व स्विच युक्त होगे तथा इन टर्नआउट  के सभी जोड़ यथा संभव वेल्डित होगे विभिन्न प्रकार के कर्व स्विच टर्नआउट के लिये अनुमत गति (शु. प. क्र. के अनुसार ) निम्नवत है

रनिंग लूप पर ट्रैक - लकड़ी के स्लीपर बिछाये गये रनिंग लूप पर 15 किमी. प्रतिघंटा से अधिक गति अनुमत नही है रनिंग लूप पर कम से कम 150 मिमी. गिट्टी के कुशन पे क्रांकीट, एसटी या सीएसटी - 9 स्लीपर पर स्लीपर घनत्व एम + 4 एस डब्ल्यूआर पर होना आवश्यक है जिसमे से कम से कम 75 मिमी का साफ़ कुशन हो आसपास ड्रेनेज अच्छा होना चहिये

टर्न इन कर्व - लकड़ी के स्लीपर पर बिछाये गये टर्न इन कर्व पर 15 किमी/ प्रतिघंटा से अधिक गति अनुमत नही है क्रांकीट, एसटी या सीएसटी - 9 स्लीपरो पर अधिकतम स्लीपर अन्तराल 65 सेमी. सेंटर से सेंटर पर टर्नआउट पर बिछाये गये रेल सेक्शन के समान रेल सेक्शन टर्न इन कर्व पर भी विछाना चाहिये टर्न इन कर्व उपरोक्तानुसार ही होना चाहिये विशेषत: लीड कर्व के अनुसार टर्न इन कर्व के बाहरी भाग में मिमी . अतिरिक्त चौड़ाई में शोल्डर गिट्टी डाला जायेगा टर्न इन कर्व का निरिक्षण मेन लाइन के टर्नआउट के निरीक्षण पर आधारित होगा

ब) रनिंग लूप या टर्न कर्व में सीएसटी - 9 स्लीपर हो तब निम्नलिखित बाते सुनिश्चित करे -

- दो लगातार स्लीपरो के रेल सीट पर क्रैक या फेक्चर न हो
- लग, तथा रेल सीट का घिसाव शिक न हो
- सभी फिटिंग प्रभावकारी हो तथा रेल स्लीपर से कसा हुआ हो

स) रनिंग लूप या टर्न इन कर्व में एसटी स्लीपर हो तब निम्नलिखित बाते सुनिश्चित करे  -

- दो लगातार स्लीपरो के रेल सीट पर क्रैक या फ्रेक्चर न हो
- लग , तथा रेल सीट का घिसाव अधिक न हो
- सभी फिटिंग प्रभावकारी हो तथा रेल स्लीपर से कसा हुआ हो
-स्लीपर तथा फिटिंग में अधिक जंग न लगा हो और छिद्र लम्बे न हो




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Index -

01. INTEGRATED CONCEPT AND OBJECTIVES OF MATERIALS MANAGEMENT (1) 01.02 रेलपथ निरक्षक तथा सहायक मंडल अभियंता के कर्तव्य (1) 02 रेलपथ (1) 02. ORGANIZATION OF MATERIALS MANAGEMENT DEPARTMENT (1) 02.01 90 यूटीएस रेलों के सम्भाल (1) 02.04 रेल तापमान (1) 02.05 रेल जोड (1) 03 स्लीपरो के कार्य (1) 03. CLASSIFICATION/CODIFICATION NOMENCLATURE OF STORES ON INDIAN RAILWAYS (1) 03.01 विभिन्न प्रकार के स्लीपरो की तुलना (1) 03.02 लचीले बंधन (1) 03.03 स्लीपर बिछाना (1) 04. PLANNING OF NON-STOCK ITEMS AND PROCESSING OF REQUISITION (1) 04.01 ट्रैक के लिए बैलास्ट प्रोफाइल (1) 04.02 फार्मेशन (1) 04.03 ब्रिज (पुल) (1) 05 पाइंट्स तथा क्रासिंग - परिचय एवं परिभाषाए (1) 05 PLANNING OF STOCK ITEMS & SYSTEMS OF RECOUPMENT (1) 05.01 विषेश ले आउट (1) 05.02 पृथक्रकरण (आइसोलेशन ) (1) 05.03 तथा क्रासिंग का अनुरक्षण तथा निरक्षण (1) 05.04 पॉइंट्स एवं क्रासिंग की (1) 06 गोलाई का प्ररंभिक ज्ञान (1) 06 PURCHASE POLICY (1) 06.01 वर्को का पुनः संरेखण (1) 07 Purchase Procedure on zonal Railways (1) 08 TENDER EVALUATION AND MISCELLANEOUS POLICY ISSUES IN PURCHASES (1) 08.01 व्यव्स्तिथ ओवरहालिंग (1) 08.02 रेलपथ अनुरक्षण का वार्षिक कार्यक्रम (1) 08.04 गहरी छनाई (1) 08.04.1 रेलपथ का उठाना लोवेरिंग तथा क्रीप (1) 08.05 छोटी वेल्डेड रेल ( एसडब्लूआर ) (1) 08.06 आन ट्रैक मशीन (1) 08.07 छोटी ट्रैक मशीने (1) 08.09 विद्युतीकृत सेक्शन में हाइट गेज (1) 08.11 अंडर ट्रायल सामग्री का रिकॉर्ड (1) 09 गति प्रतिबन्ध और संकेतक (1) 09 Receipt And Inspection of stores (1) 09.01 ठेकेदार की सुरक्षित कार्य प्रणाली (1) 09.03 रेल संरक्षा आयुक्त की स्वीकृति वाले कार्य (1) 10 निरक्षण का उद्देश्य (1) 10 ISSUE AND DISTRIBUTION OF STORES (1) 10.01 राइडिंग गुणवत्ता तथा राइडिंग इंडेक्स (1) 10.03 सिटीआर तथा टीजीआई (1) 10.04 रेलपथ प्रबंधन पध्दति (टीऍमएस ) (1) 11 RETURNED STORES (1) 11.01 स्लीपरो का बिछाना (1) 12 दुर्घटना (1) 12 Scrap Disposal (1) 12.01 ब्रीच (1) 12.02 डाईवर्शन (1) 13 INVENTORY MANAGEMENT (1) 14 लंबी वेल्डित रेल (परिभाषाए) (1) 14.01 एलडब्लूआर / सीडब्लूआरके लिये स्वीकृत स्थान (1) 14.02 एलडब्लूआरकी डीस्ट्रेसिंग (1) 14.03 एलडब्लूआर / सीडब्लूआर का अनुरक्षण (1) 14.04 रेलपथ पर्येवेक्षक - मेट तथा चाबीदार के लिए अनुमत तथा निषिद्ध कार्य (1) 15 - सर्वेक्षण (1) 15 बयाना राशि और जमानत राशि (1) 15.01 SURVEYING (2) 16 रेलवे टेंडर सिस्टम (Railway Tender System) (1) Accidents (2) Active & Passive Earth Pressure (1) Anti corrosive treatment (1) Ballast (2) Bearings in Bridge (1) Blanketing Material (1) Bridges (2) Buckling of track (1) Building Work (1) Cant deficiency & Cant Excess (1) Census (1) Chequered Tiles (1) Chlorination of Water (2) Chlorination Practices (1) Chlorine demand (1) Civil Engineering - Bridges (2) Civil Engineering - P Way (41) Civil Engineering - Works (5) CMS Crossing (1) Completion report (1) Contour & Contour interval (1) Correction Slip (1) CRS Sanction (1) CTR and TGI Value (1) Curing of Concrete (1) curves (2) Deep Screening (2) Design mode (1) Design of concrete mix (2) Destressing (1) Disinfection of water (1) disposal of human waste: (1) Distressed bridges (2) Distressing of LWR (2) distribution System (1) dry density (1) Duties (3) Duties & Responsibilities (9) Duties of Gateman (1) E01.02 Duties of Keyman / Mate / PWS (1) E02.01 Permanent Way (1) E02.02 Handling of 90 UTS rails (1) E02.05 Rail Temperature (1) E02.06 Rail Joints (1) E02.07 Maintenance of Rail Joints (1) E03.01 SLEEPERS AND FASTENINGS - Functions of Sleepers (1) E03.02 Comparison between Various Types of Sleepers (1) E03.04 Laying of Sleepers (1) E04.02 Ballast Profile for L.W.R. track (1) E04.04 Bridges (1) E05.01 Points & Crossings: Introduction & Definitions (1) E05.04 Maintenance and Inspection of Points and Crossing (1) E05.05 Reconditioning of Points and Crossing (1) E06.01 Basics of Curves (1) E06.02 Realignment of Curve (1) E08.01 MAINTENANCE OF TRACK-Through packing (1) E08.02 Systematic Overhauling (1) E08.03 Annual Programme for Regular Track Maintenances (1) E08.04 Lifting/ Lowering of Track and Creep (1) E08.05 Deep Screening (1) E08.06 Short Welded Rail (1) E08.07 Maintenance of SWR (1) E08.10 Level Crossing (1) E08.11 Equipments at Level Crossing (1) E08.12 Maintenance / Examination / Inspection of Level Crossing / Gate (1) E08.14 Welding of Rails (1) E08.15 Records of Material under Trial (As per Cs.no 99) (1) E09.01 Speed Restriction and Indicators (1) E09.02 Safe Working of Contractors (As per Cs.No 95) (1) E09.03 Works Requiring CRS Sanction (1) E10.01 INSPECTION OF TRACK - Object of Inspection (1) E10.02 Riding Quality and Riding Index (1) E10.03 Track Recording and Oscillograph Car (1) E10.04 CTR and TGI Value (1) E12.01 ACCIDENTS AND BREACHES - Accidents (1) E12.02 Breaches (1) E12.03 Diversion (1) E14.01 LONG WELDED RAIL - Definitions (1) E14.02 Permitted locations for LWR/CWR (1) E14.04 Maintenance of LWR / CWR (1) E14.05 DOs and Don’ts OF LWR For PWM / MATES & KEYMAN (1) Egineering (1) Elastic Fastening (1) Elastic Rail Clip (1) Encroachments of Railway land. (2) Engineering (26) Engineering - Book (3) Examination of Rails (2) Fabrication of Glued joint IN SITU. (1) Flushing cisterns (1) FOB (1) Gateman (2) Greasing of ERCs (1) Grow More Food Scheme (1) Guideline (3) H02 भण्डार विभाग का महत्व (1) H03 भण्डार डिपो की संरचना (1) H04 भण्डार का वर्गीकरण (1) H05 कोडिफीकेशन (1) H06 मानकीकरण एवं उसकी उपयोगिता (1) H07 वित्तीय औचित्य के सिध्दांत (1) H08 क्रय के विभिन्न माध्यम (1) H09 क्रय में विविध अधिमान्यताए (1) H10 भण्डार विभाग के अधिकारियो की क्रय शक्तियां (1) H12 निविदा समिति (1) H13 अनुबंध (1) H16 स्थानीय खरीद (1) H17 भण्डार डिपो में भण्डार प्राप्ति के स्त्रोत (1) H18 महत्वपूर्ण वस्तुए एवं उनकी खरीद (1) H19 भण्डार डिपो का संगठन एवं कार्य (1) H20 प्राप्ति अनुभाग की क्रिया - विधि (1) H21 वार्ड की क्रिया - विधि (1) H22 प्रेषण अनुभाग की क्रिया - विधि (1) H23 बहीखाता अनुभाग की क्रिया - विधि (1) H24 डिपो प्रणाली (1) H25 भण्डार का निरीक्षण (1) H26 अस्वीकृत भण्डार (1) H27 लौटाया गया भण्डार (1) H28 अग्रदाय भण्डार (1) H29 अधिशेष भण्डार (1) H30 रेल सामग्री की बिक्री (1) H31 रद्दी माल और नीलामी बिक्रिया (1) H32 वस्तु - सूची नियंत्रण (1) H33 स्टॉक सत्यापन (1) H34 मांगकरताओ व्दारा डिपुओ से भण्डार प्राप्त करने की प्रक्रिया (1) H35 संक्षिप्त टिप्पणीयां (1) Handling of 90 UTS Rails (1) Height Gauges on Electrified Section (1) Honey combing of concrete & its prevention (1) Hot Weather Patrolling (1) Imprest Store (1) INDEX (2) Indicator Boards & Signages (1) Inspection (6) Insulated joints (1) Isolation (1) Keyman / Mate / PWS (3) Laying of Sleepers (1) LDCE Exam (3) Level Crossing (2) Level crossings (2) Licensing Railway Land cultivation (1) Liner Biting (1) LWR (6) Maintenance (2) Maintenance in Electrified Area (2) Maintenance of CMS Xing (1) Maintenance of P Way (5) Maintenance of Rail Joints (1) Maintenancee of SWR (1) Manson precaution (1) Monsoon Patrolling (2) Numerical rating system (NRS) (1) Optimum moisture content (1) P Way (23) Pandrol Clip (1) pass (1) Patrolling of Rail Permanent Way (6) Permanent Way (2) Permanent Way (P Way) (10) Pile Foundation (1) Points and Crossing (3) Protection of Rail (1) Pumping Water Level (1) PWI (1) PWI / AEN / DEN (1) quality control (2) Question & Answer (62) Rail Clusters (1) Rail Formation (2) rail fracture (1) Rail Joints (1) Rail Renewal (3) Rail Welding (3) Rails Defects (2) Railway Affecting Works (1) Railway Construction (1) Railway Organisation (2) Realignments of Curve) (1) Reconditioning of Points and Crossing (1) Rehabilitation of Bridges (1) Renewal of Rail (1) River Training protection work (1) safe speed (1) Safe Working (1) Safety at P. 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