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Thursday, December 3, 2020

अध्याय क्र. - 2 वक्रो का पुन: संरेखण

वक्रो पर चालन : -

(1) वक्रो पर निर्बाध एवं संतोषपूर्ण चालन के लिये -

(क) वक्रता एवं/ अथवा सुपरएलीविशन में आकस्मिक परिवर्तन नही होना चाहिये और

(ख) प्रत्येक बिंदु पर सुपरएलीविशन वक्रता के अनुरूप होना चाहिये

(2) ए और बी समूह के मार्गो पर प्रति 4 मास और अन्य मार्गो पर प्रति 6 मास में प्रत्येक कर्व का गेज वरसाइन तथा सुपरएलीविशन को एक बार अवश्य जाँच लेना चाहिये इनकी जाँच तब भी की जनि चाहिये जब कभी कर्व पर चालन असंतोषजनक पाया जाये वरसाइन सुपरएलीवेशन तथा गेज को रेल पथ निरीक्षक व्दारा दिये गये प्रोफार्मा के अनुरूप बने कर्व रजिस्टर से दर्ज किया जाना चाहिये ए और बी मार्गो के प्रोफार्मा के अनुरूप आने कर्व रजिस्टर में कर्व की ज्यामितीय स्थिति के बारे के ग्रफिक अनुमान प्राप्त करने के लिये प्रत्येक कर्व हेतु संचयी बारम्बारता रेखा लेख भी होना चाहिए सहा. म. इंजी. प्रत्येक तिमाही में , प्रत्येक रेल पथ निरीक्षक के कम से कम एक कर्व की वरसाइन, सुपरएलीविशन तथा गेज की कर्व के एक सिरे से दुसरे सिरे तक जाँच करेगा पुन: संरेखण करने का निर्णय प्रभारी रेलपथ निरीक्षक अथवा सहा. म. इंजी. व्दारा लिया जाना चाहिये वक्र का पुन: संरेखण सूखे मौसम में करना चाहिये तथा वर्षा काल में इसे तब तक नही करना चाहिये जब तक कि ऐसा करने से बचा न जा सके

वक्र के पुन: संरेखण  की कसौटी  -

(1) जब ट्राली व्दारा अथवा इंजन की फुट प्लेट से अथवा गाडी व्दारा निरिक्षण में अथवा रेलपथ अभिलेखन में कर्व पर चालन असंतोषजनक पाया जाये तो कर्व का पुन: संरेखण किया जाना चाहिये

(2) कर्व पर चालन केवल वास्तविक वरसाइन ओर अभिकल्पित वरसाइन के बीच के अंतर पर ही निर्भर नही करता बल्कि वास्तविक वरसाइन मानो में स्टेशन से स्टेशन के मध्य अंतर पर भी निर्भर करता है क्योकि यह स्टेशन से स्टेशन के मध्य वरसाइन में परिवर्तन ही पार्श्व त्वरण के परिवर्तन की दर को निर्धारित करता है

स्टेशन से स्टेशन के बीच वर्साइन के बदलाव हेतु सेवा  सीमा तीनो गति समूह के लिये निम्नानुसार निश्चित करना चाहिये -



निरिक्षण के दौरान उपरोक्त सीमा से ज्यादा पाये जाने पर ऊँ स्थितियों में जहाँ सन्निकट स्टेशनो  के बीच वरसाइन का बदलाव केवल कुछ छिटपुट स्थलों पर हो स्थानीय समंजन यथाशीघ्र किया जाना चाहिये यदि 20 % अधिक स्टेशनो के वरसाइन का बदलाव निर्दिष्ट सीमा से ज्यादा हो तो एक माह के अंदर पूरी गोलाई के संरेखण की योजना बनानी चाहिये

डोरी संरेखण (स्ट्रिंग लाइनिंग ) संक्रियाए -
वक्रो के पुन : संरेखण ओर संक्रमण कार्य में निम्न 3 मुख्य संक्रियाए शामिल है -

(क) वसाइन के माप व्दारा वर्तमान वक्र का सर्वेक्षण
(ख) संशोधित संरेखण का निर्धारण और सही वह्योत्यान की व्यवस्था सहित विस्थापनो की संगणना
(ग) वक्र का संशोधित संरेखण के अनुरूप विस्थापन

जीवा की लम्बाई - ओवेर्लैपिंग जीवा की लम्बाई 20 मीटर तथा 10 मीटर के अन्तराल पर बाहरी रेल के गेज फेस पर वसाइन

संशोधित  संरेखण का निर्धारण विस्थापनो की संगणना -

डोरी संरेखण के मूल सिध्दांत निम्न प्रकार है -

(1) क्योकि जीवा की लम्बाई समान है अत: वर्तमान वरसाइन का कुल कोड जोड़ प्रस्तावित वरसाइन के कुल जोड़ के बराबर होना चाहिये

(2) किसी स्टेशन पर किसी दिशा में विस्थापित संलग्न स्टेशनो  पर वर्साइन को विपरीत दिशा में विस्थापन की आधी मात्रा तक प्रभावित करता है यदि संलग्न स्टेशनो पर रेलपथ में कोई छेडछाड न की जाए

(3) किसी स्टेशन पर वर्साइन के अंतर का दूसरा जोड़ विस्थापन के आधा परिमाण के बराबर होता है

(4) पहले और अंतिम स्टेशन पर विस्थापन शून्य चाहिये

वक्र को संशोधित संरेखण पर विस्थापित करना - छड़ो से काटी गयी खुंटिया अथवा कीलो के चिन्हों के साथ लकड़ी की खूटियाँ इस्तेमाल करके इस्पाती फीते से वक्र के संशोधित संरेखण को सीमांकित करना चाहिये और कर्व के भीतर के तरफ ट्रैक के गुनिया में सेस पर गाड़ा जाना चाहिये और स्लू के अनुसार ऐसी दूरी पर ताकि ट्रैक का अंतिम एलाईनमेंट खूटी के फेस से एक गेज की दूरी पर हो या लकड़ी के खूँटी पर निशान से इनर रेल के बाहर (नान्गेज फेस 0 से होनी चाहिये ओर उनकी सत्यता को इन खूंटियो पर वर्साइन माप कर चेक किया जाना चाहिये ओर यह सत्यापित किया जाना चाहिये की ये कर्व के अंतिम वरसाइनो से मेल खाते है कर्व को खूटियो के एलाइनमेंट के अनुसार स्लू किया जाना चाहिये

स्ट्रिंग लाइनिंग विधि की सीमाए -

1. अगर प्रस्तावित वरसाइन सही है और गोलाई की शुरुआत ठीक नही है तो इसका परिणाम गोलाई के अंत में बचा हुआ अधिक स्लू जाता है

2. अगर प्रस्तावित वर्साइन  सही नही है लेकिन शुरुआत ठीक है तो अत्यधिक बाहरी या आन्तरिक स्लू सम्पूर्ण गोलाई में फ़ैल जाता है

उक्त समस्या को कर्व की रिएलाइनमेंट के आप्टिमाइजेशन विधि का प्रयोग करके हल किया जा सकता है -

(अ)  गोलाई का सही शुरुवात और अंत पता करके

(ब) गोलाई के मध्य में स्लू जीरो रखकर

 आप्टिमाइजेशन विधि के मूल सिध्दांत -

(1) वर्साइनो का प्रथम समेशन वर्साइन डायग्राम का क्षेत्रफल निरुपित करता है (स्टेशन दूरी इकाई में )

(2) वर्साइनो का द्वतीय  समेशन अंतिम स्टेशन के बारे में वर्साइन डायग्राम का आघूर्ण निरुपित करता है (स्टेशन दूरी इकाइयो में )

विधि -

प्राप्त वर्तमान वर्साइनो (Ve) के प्रथम (FS) तथा व्दितीय समेशन (SS) को ज्ञात करना

शुरुवात से मध्य भाग का चेनेज ज्ञात करना

x = N - SS   N तक / FS N तक

व्दितीय समेशन से इंटरपोलेशन व्दारा सारणी व्दारा x पर आफसेट ज्ञात करना समीकरण व्दारा Vp (प्रस्तावित वरसाइन ) ज्ञात करना - a Vp2  + bVp + c = 0

इसलिये V p = (- b +- b2  - 4ac ) /2 a

कर्व की साम्य लम्बाई + ट्रांजिशन लम्बाई

गोलाई की शुरुआत = कर्व के केंद्र की चेनेज (-) L / 2

गोलाई का अंत  = कर्व के केद्र की चेनेज (+) L /2

Vp मान निर्धारित करे

स्ट्रिंग  लाइन विधि के अनुसार आगे बढे


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